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"ज़िंदगी की उथल पुथल में"

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ज़िंदगी की  उथल पुथल में, क्या कुछ याद है, कहाँ से शुरुआत की थी ??? खाली जेब में रखी, एक रुमाल के कोने की गठान में, जब मां पूजा के फूल बाँधा करती थी, संजो कर रखते थे, जैसे सांसे बसती हो उसमे हमारी, मगर आज, जब जेबें भरी हैं, फिर भी आँखों में नींद संजो नहीं पाते। ज़िंदगी  की उथल पुथल में, क्या कुछ याद है, कहाँ से शुरुआत की थी ??? टेलीफोन की एक घंटी पर, जहाँ दूर से दौड़े चले आते थे, ख़ुशी इस बात की नहीं थी की बात करनी है,  ख़ुशी इस बात की हुआ करती थी, की हमारे घर तार वाला फोन है, मगर आज स्पैम कॉल्स के चंगुल में ऐसे फसे हैं, की अब साइलेंट से हटाने का दिल नहीं करता। ज़िंदगी  की उथल पुथल में, क्या कुछ याद है, कहाँ से शुरुआत की थी ??? सुबह की पूजा करके, जब पापा खुशबू से भरा हुआ धूप जलाते थे, सारा घर उसके धुए के बादल से ढक सा जाता था, मगर आज जब गाड़ियों के धुओं से भरा हुआ शहर देखते हैं,  तो लगता है, यार वो धुंआ ही अच्छा था !!! ज़िंदगी  की उथल पुथल में, क्या कुछ याद है, कहाँ से शुरुआत की थी ???

" जवाब "

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कभी तुझसे कहे ये ज़मीं  की आ, ले समां मुझमें कहीं  कभी तुझसे कहे ये आसमां  की आ, ज़रा गले लग जा  कभी तुझसे कहे ये फिज़ा  की छू लूँ तुझे ज़रा एक दफा  की ऐसा क्या है तुझमें ! जो इसकी इजाज़त किसी को नहीं  की देख पाऊँ कितनी गहराई है तुझमें  की कितना प्यार है छुपा  क्यों है बाहर ये सख़्त सी दीवार  क्यूँ है इस नर्मी पर पहरे हज़ार  जो रोक देती है वो मासूम ख्वाहिशें हर बार  जो होती हैं हमेशा उड़ने को तैयार  तो इसमें बुरा ही क्या है अगर वो उड़ना चाहें तो  तो इसमें बुरा ही क्या है जो ये वक़्त बेवक़्त पहरे कभी ना हो तो! सवाल बहुत से थे लेकिन जवाब एक भी ना मिला  ना होते इतने सवाल कभी,  पर शायद आज देखा करीब से तुझे  शायद आज जाना हक़ीक़त में तुझे  तो लगा जैसे इन सवालों का कभी कोई वजूद ही ना था  तब लगा शायद उन सवालों की कभी ज़रुरत ही ना थी  क्यूंकि जवाब खुद तू ही था   जवाब तेरी हर बात में था  जवाब तेरे हर लहज़े में था  जवाब तेरे हर ढंग में था  जवाब तेरे हर रंग में था       

" प्रकृति हूँ मैं "

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मुझे भी साथ लेकर चलो, पीछे तो मत छोड़ो ना बहुत कुछ हो गया है इन दिनों, मेरा हाल तो पूछ लो ना जानती हूँ बहुत दूर निकल गए हो पर कहीं ऐसा ना हो इतनी दूर रह जाऊं मैं, की नामुमकिन हो ढूँढ पाना सुना है, नाउम्मीदी गुनाह है! शायद इसीलिए, इस  उम्मीद  से धीरे चल रही हूँ, की शायद तुम लौट कर आओगे  इस उम्मीद से वहीं मिलूंगी तुम्हें, की शायद तुम आकर गले लगाओगे इस उम्मीद से थकी नहीं, की शायद तुम आकर कहोगे "चलो फिर से एक नयी शुरुआत करते हैं " पर ये इंतज़ार अब लंबा सा लगता है साथ बिताया हर वो पल अब लम्हा सा लगता है, तुम अपनी खोज में जहाँ भी जाओगे, रास्ते मुझसे ही होकर निकलेंगे लेकिन तुम्हारी ज़रूरतों पर तर्क नहीं करुँगी तुम्हारी ख्वाहिशों में फर्क नहीं करुँगी मैं फिरसे अपना एक हिस्सा तुम्हारे नाम कर दूँगी  शर्तों की दीवार पर वादों के ताले नहीं कसूँगी  पर क्या कुछ अच्छा होगा अगर हम साथ मिलकर अपनी अपनी मंज़िल तक पोहचें !!! थोड़ा वक़्त तुम मुझे दो, तो थोड़ी राहत मैं तुम्हें दूँ  थोड़ी आदतें तुम अपनी बदलो, तो थोड़ी नैमतें मैं इनाम दूँ  बदलाव की

Better A Cruel Truth Than A Comfortable Delusion?

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I have known her since the springtime of her life.  She is someone who has always taken pride in being a woman.  She has always dreamt of having a beautiful wedding and having someone in her life that completes her.  But today for the first time it makes her think, had this been such an issue if she had been a guy? Had her career taken a back seat and put on stake just because according to the social norms she would not find a suitable match after 30! She has not even completed her 26 by the way. Would anyone marry a guy without a job? NO. Would any family give their daughter to a man with no earning? NO. Then why is it any different for her? Just because her biological clock is ticking at the top of her head! Or just because the responsibilities are due!  For all those girls out there who do not want to be working and justify it saying they chose for it, how she wishes guys could do the same. Probably then people would understand how important it is for an "individual&quo

Difference

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“Oh you have always spoken your mind, you can never know how it feels to be not able to speak your heart!!!” said, someone. I replied, “but how are these two even related?” “Does your mind not shout aloud what goes within? Is your mind not a reflection of what you speak? Replied that someone. I smiled and kept quiet! The expression is an art, not the world at large has. But the ones who do practice it are often misconstrued. Being expressive is a trait most often judged as being open to the concept of comfortably sharing what you feel, which has always been a struggle for me. Not because it is something that I want to change but because at times it is difficult for people to perceive you as YOU. Well nobody is at fault either. Now let me be very precise that here we are not talking about expressing your feelings for someone, be it good or bad, romantic or something you don’t appreciate at all. That takes time too. People take their own sweet little time but com

Bindi - The Center Of My Universe

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Sounds too Indian of a name right!!! Well, Yes, it is. While all my folks with Indian origin will quite relate to it like I do, let me help those friends who might happen to read this overseas if somehow   this blog reaches you and I manage to be any decent at e xpressing myself. There is a lot to its history but let me simplify it to you for a better understanding. Bindi originates from a Sanskrit word "Bindu" which signifies a dot or a focal point. Much like a "Full stop" used at the end of a sentence to complete it, now that we have understood the root of it, Similarly Bindi is more of an ornamental form of this dot worn on the forehead by almost every woman in India at some phase or another of her life. It completes the look they say! Now you got it, Isn't it? While you have your sources that would help the wings of your imagination, let me help you with mine. For me it has always been a beautiful, small, red-colored circular dab on my mother&#