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Showing posts from April, 2020

" जवाब "

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कभी तुझसे कहे ये ज़मीं  की आ, ले समां मुझमें कहीं  कभी तुझसे कहे ये आसमां  की आ, ज़रा गले लग जा  कभी तुझसे कहे ये फिज़ा  की छू लूँ तुझे ज़रा एक दफा  की ऐसा क्या है तुझमें ! जो इसकी इजाज़त किसी को नहीं  की देख पाऊँ कितनी गहराई है तुझमें  की कितना प्यार है छुपा  क्यों है बाहर ये सख़्त सी दीवार  क्यूँ है इस नर्मी पर पहरे हज़ार  जो रोक देती है वो मासूम ख्वाहिशें हर बार  जो होती हैं हमेशा उड़ने को तैयार  तो इसमें बुरा ही क्या है अगर वो उड़ना चाहें तो  तो इसमें बुरा ही क्या है जो ये वक़्त बेवक़्त पहरे कभी ना हो तो! सवाल बहुत से थे लेकिन जवाब एक भी ना मिला  ना होते इतने सवाल कभी,  पर शायद आज देखा करीब से तुझे  शायद आज जाना हक़ीक़त में तुझे  तो लगा जैसे इन सवालों का कभी कोई वजूद ही ना था  तब लगा शायद उन सवालों की कभी ज़रुरत ही ना थी  क्यूंकि जवाब खुद तू ही था   जवाब तेरी हर बात में था  जवाब तेरे हर लहज़े में था  जवाब तेरे हर ढंग में था  जवाब तेरे हर रंग में था       

" प्रकृति हूँ मैं "

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मुझे भी साथ लेकर चलो, पीछे तो मत छोड़ो ना बहुत कुछ हो गया है इन दिनों, मेरा हाल तो पूछ लो ना जानती हूँ बहुत दूर निकल गए हो पर कहीं ऐसा ना हो इतनी दूर रह जाऊं मैं, की नामुमकिन हो ढूँढ पाना सुना है, नाउम्मीदी गुनाह है! शायद इसीलिए, इस  उम्मीद  से धीरे चल रही हूँ, की शायद तुम लौट कर आओगे  इस उम्मीद से वहीं मिलूंगी तुम्हें, की शायद तुम आकर गले लगाओगे इस उम्मीद से थकी नहीं, की शायद तुम आकर कहोगे "चलो फिर से एक नयी शुरुआत करते हैं " पर ये इंतज़ार अब लंबा सा लगता है साथ बिताया हर वो पल अब लम्हा सा लगता है, तुम अपनी खोज में जहाँ भी जाओगे, रास्ते मुझसे ही होकर निकलेंगे लेकिन तुम्हारी ज़रूरतों पर तर्क नहीं करुँगी तुम्हारी ख्वाहिशों में फर्क नहीं करुँगी मैं फिरसे अपना एक हिस्सा तुम्हारे नाम कर दूँगी  शर्तों की दीवार पर वादों के ताले नहीं कसूँगी  पर क्या कुछ अच्छा होगा अगर हम साथ मिलकर अपनी अपनी मंज़िल तक पोहचें !!! थोड़ा वक़्त तुम मुझे दो, तो थोड़ी राहत मैं तुम्हें दूँ  थोड़ी आदतें तुम अपनी बदलो, तो थोड़ी नैमतें मैं इनाम दूँ  बदलाव की