" प्रकृति हूँ मैं "
मुझे भी साथ लेकर चलो, पीछे तो मत छोड़ो ना
बहुत कुछ हो गया है इन दिनों, मेरा हाल तो पूछ लो ना
जानती हूँ बहुत दूर निकल गए हो
पर कहीं ऐसा ना हो इतनी दूर रह जाऊं मैं, की नामुमकिन हो ढूँढ पाना
सुना है, नाउम्मीदी गुनाह है!
शायद इसीलिए,
इस उम्मीद से धीरे चल रही हूँ, की शायद तुम लौट कर आओगे
इस उम्मीद से वहीं मिलूंगी तुम्हें, की शायद तुम आकर गले लगाओगे
इस उम्मीद से थकी नहीं, की शायद तुम आकर कहोगे "चलो फिर से एक नयी शुरुआत करते हैं "
पर ये इंतज़ार अब लंबा सा लगता है
साथ बिताया हर वो पल अब लम्हा सा लगता है,
तुम अपनी खोज में जहाँ भी जाओगे, रास्ते मुझसे ही होकर निकलेंगे
लेकिन तुम्हारी ज़रूरतों पर तर्क नहीं करुँगी
तुम्हारी ख्वाहिशों में फर्क नहीं करुँगी
मैं फिरसे अपना एक हिस्सा तुम्हारे नाम कर दूँगी
शर्तों की दीवार पर वादों के ताले नहीं कसूँगी
पर क्या कुछ अच्छा होगा अगर हम साथ मिलकर अपनी अपनी मंज़िल तक पोहचें !!!
थोड़ा वक़्त तुम मुझे दो, तो थोड़ी राहत मैं तुम्हें दूँ
थोड़ी आदतें तुम अपनी बदलो, तो थोड़ी नैमतें मैं इनाम दूँ
बदलाव की झपकी तुम मुझे दो, तो प्यार की थपकी मैं तुम्हे दूँ
देर अब भी नहीं हुई है,
वापिस आ सको तो क्या आ पाओगे?
प्रकृति हूँ मैं, मेरी गोद जैसा सुकूं कहाँ पाओगे!
प्रकृति हूँ मैं, मेरी गोद जैसा सुकूं कहाँ पाओगे!
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