"ज़िंदगी की उथल पुथल में"
ज़िंदगी की उथल पुथल में, क्या कुछ याद है, कहाँ से शुरुआत की थी ???
खाली जेब में रखी, एक रुमाल के कोने की गठान में, जब मां पूजा के फूल बाँधा करती थी,
संजो कर रखते थे, जैसे सांसे बसती हो उसमे हमारी,
मगर आज, जब जेबें भरी हैं, फिर भी आँखों में नींद संजो नहीं पाते।
ज़िंदगी की उथल पुथल में, क्या कुछ याद है, कहाँ से शुरुआत की थी ???
टेलीफोन की एक घंटी पर, जहाँ दूर से दौड़े चले आते थे,
ख़ुशी इस बात की नहीं थी की बात करनी है,
ख़ुशी इस बात की हुआ करती थी, की हमारे घर तार वाला फोन है,
मगर आज स्पैम कॉल्स के चंगुल में ऐसे फसे हैं, की अब साइलेंट से हटाने का दिल नहीं करता।
ज़िंदगी की उथल पुथल में, क्या कुछ याद है, कहाँ से शुरुआत की थी ???
सुबह की पूजा करके, जब पापा खुशबू से भरा हुआ धूप जलाते थे,
सारा घर उसके धुए के बादल से ढक सा जाता था,
मगर आज जब गाड़ियों के धुओं से भरा हुआ शहर देखते हैं,
तो लगता है, यार वो धुंआ ही अच्छा था !!!
ज़िंदगी की उथल पुथल में, क्या कुछ याद है, कहाँ से शुरुआत की थी ???
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